
जब हम देवी पूजन कर रहे थे तो कुछ तस्वीरे मेरे सामने आने लगी ..एक चिन्तक की भांति मै सोचने लगा की जिस देश में बच्चियों की इतना कद्र हो,उनकी पूजा हो भला वहI लड़कियों की हालत इतनी ख़राब क्यू ?क्या हम इस देवी पूजन को एक परम्परा में ही सिमित कर के छोर चूके है ? अगर नहीं तो हर 6 में से कम से कम 1 लड़की अपना पन्दराह्वा जन्म दिन क्यू नहीं मना पाती? 12 लाख में कम से कम १ लाख लडकियi तो अपना पहला जन्म दिन भी नहीं देख पाती है ! भारत की 53 % लड़किया(5-9 age )अशिक्षित क्यू है ?
अगर हमारे पूजा में थोड़ी भी सच्चाई है तो हममे से बहुत लोग उसका अपने जीवन में पालन क्यू नहीं करते ,क्या धर्म सिर्फ दिखावा मात्र रह गया है ,जिस लड़की को देवी मानकर हम पूजा करते है उसी लड़की की शादी के लिए हम दहेज़ क्यू लेते /देते है ..उसी देवी स्वरुप को समाज में बराबर का हक क्यू नहीं है ...क्या हमे माँ दुर्गा को पूजा करने का हक है ? माँ दुर्गा क्या हमसे ये सवाल नहीं पूछ रही है की "तुम तो हर नवमी को मेरे साक्षात् बाल स्वरुप की पूजा करते हो तो बाद में तिरस्कार क्यू ?" क्या इसका जवाब हम या हमारी पालनहार सरकार या समाज दे सकती है ?
भारत का एक और तस्वीर भी सामने आ रहा है ..डर है की जो भारत अपनी उच्च परम्परा ,नैतिक ताकत और दैविक शक्तियों के लिए जाना जाता था वो नग्नता के लिए मत जाना जाने लगे ,डर ये भी है की देवी शब्द कही खो मत जाये ,आधुनिकता का विरोधी मै भी नहीं पर हा देवी की इन हालातो से दुःख लगता है ...
इस नवरात्री के देवी पूजन पे हम क्या इस जिम्मेवारी से कह सकते है की जिस देवी के बाल स्वरुप की हम पूजा करते है उसका कभी शोषण या अपमान न हम कभी करेंगे न ही करने देंगे !
Sources:UNICEF Reports,Wikipedia
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