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Friday 21 September 2012

FDI in Retail

FDI in  Retail पर इतना हंगामा क्यू ? सारे नेता बढ़ चढ़ कर बाते कर रहे है मानो वो किसानो के सबसे बड़े हितैशी हों ! मै एक किसान का लड़का हू,खेत ,किसान ,और उनकी हालात को नजदीक से देखा है और जिया है,कोई ये क्यू नहीं सोचता की चलो किसान हित की बात है तो किसान  से ही पूछ ले .पर नहीं किसके पास इतना टाइम है यहाँ तो credit लेने की होड़ जो चल पड़ी है.

खैर हम क्यू किसी का जिंदाबाद-मुर्दाबाद करे ,सोचा चलो मै खुद अपने गाँव की नब्ज टटोलू,फ़ोन लगाया गाँव ,पापा ,भैया  ,चाचा ,काका,बाबा,मामा, मौसा उन सब से बात कर डाली जो आज किसान है ,खेती करते है और सिर्फ खेती ही करते है ,ध्यान देने वाली बात तो ये है की वो खेती तो करते है पर उनका जीवन यापन खेती के भरोसे नहीं है ,उनकी जरुरत की चीजो के लिए पैसे खेती से नहीं जुटा पाते.

मैंने सब को FDI in  Retail का मतलब ठेठ देहाती भाषा में समझाया ,बताया की बड़ा किराना दुकानदार (वालमार्ट ) एक ही दुकान में सब कुछ बेचेगा ,सुई से लेकर शूरा(दारू) तक.और आपकी फसल भी dierect वही खरीदेगा फिर processing करेगा और अपनी दुकानवा में बेचेगा.

पापा बोले इसमें problem क्या है ,मैंने कहा हमारे कुछेक नेता डरे है की ये बड़ा किरानावाला कही आप लोगो को ठग न ले ,कही आपको कम कीमत न दे दे  ,आपके फसल को रिजेक्ट न कर दे ये कह कर की required  quality से match नहीं करता ,आपका शोषण न कर ले ! इसलिए नेता डरे है .

पापा बोले "इ वालमार्ट इस सरकारवा से ज्यादा शोषण नहीं न करेगा ?" इसका जबाब तो मेरे पास भी नहीं था.बात आगे बढ़ी ,चाचा (जो अपने ज़माने के graduate  है ) बोले की अगर इतना ही फिकर है तो हमारे नेता  Minimum Support Price (MSP) काहे नहीं fixed कर देते है ,हमारे सब फसलो के लिए ,जैसे गेंहू(Wheat) धान(Rice) के लिए है ,वैसे ही टमाटर ,आलू,प्याज मक्का, सेब,पपीता सब के लिए MSP fixed  कर दे .अपने गन्ने का कैसे है सरकारवा MSP fixed करती है और हम उसी रेट में बचते है ,कभी कभी तो प्राइवेट कंपनिया ज्यादा ही रेट दे देती है.

मुझे तो बात बड़ी अच्छी लगी मैंने तो हामी भरी और प्रणाम कर के फ़ोन रखने ही वाला था की चाचा बोले लो थोडा अपने चाची से भी बात कर लो चाची ने आशीर्वाद दिया और फिर बोली की जरा तुम अपने पिंकू भैया को भी फोन करके बता देना की वो अब गाँव ही आ जाये यही खेती बारी करे अब उहा का करेगा बेचारा अब तो उसके छोटका किराने की दुकान में कोई जायेगा नहीं ?

 मैंने हामी भरी ,प्रणाम किया ,फोन रखा और सोच में पर गया की भला कौन सही है-पापा जो अपनी ६० बरसो को कोस रहे थे  या चाचा जो एक आस लगाये बैठे है अपने नेताओ से या चाची  जो पिंकू के बारे में डरी हुई थी ?


Amit Kumar
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